Tuesday 19 May 2009

यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,


ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,

ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए, मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,

कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ, दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,

उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें, और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,

मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए, बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,

उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे, इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,

अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है, मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,

यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ, पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए!

दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है
दिल से खेलना हमे आता नहीं
इसलिये इश्क की बाजी हम हार गए
शायद मेरी जिन्दगी से बहुत प्यार था उन्हें
इसलिये मुझे जिंदा ही मार गए
मना लूँगा आपको रुठकर तो देखो,
जोड़ लूँगा आपको टूटकर तो देखो।
नादाँ हूँ पर इतना भी नहीं ,
थाम लूँगा आपको छूट कर तो देखो।
लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।
भीगी आँखों से मुस्कराने में मज़ा और है,
हसते हँसते पलके भीगने में मज़ा और है,
बात कहके तो कोई भी समझलेता है,
पर खामोशी कोई समझे तो मज़ा और

Thursday 14 May 2009

मेरा एडमिशन तो पक्का...


कहते है ना बच्चों की परवरिश और भविष्य का संवारना एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसमें सारी जिंदगी भी कम सी लगती है। लेकिन यदि आपसे कोई पूछे कि आपका बच्चा कितने साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू हुआ था तो आप कहेंगे वही जिस नॉर्मल उम्र में सब बच्चे स्कूल जाना शुरू करते है। लेकिन यदि आपसे यह कहा जाये कि आपके बच्चे का ऐडमिशन जन्म के साथ ही स्कूल में हो जायेगा तो आप कहेंगे वो कैसे? जी हां अब उसको स्कूल में जाने के लिये दो साल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। जन्म से पहले ही उसकी ऐडमिशन और जन्म लेते ही स्कूल में एंट्री। शैमरॉक स्कूल के मैनेजिंग डायरेक्टर अमोल अरोड़ा का कहना है कि हमारे प्ले स्कूल से यह कॉन्सेप्ट की शुरूआत हुई है। और कई अभिभावकों ने हमारे यहां पर फोन व मेल करके हमें इस कॉन्सेप्ट के बारें में पूछा। अभी वो जन्म से पहले ही उनका रजिस्ट्रेशन करवाकर जन्म के बाद यहां स्कूल में भेजने को तैयार हो गये है। उन्होंने कहा कि अब उनको दो वर्ष तक का इंतजार करना भी गवारा नहीं है। रिसेशन के टाइम में भी पेरेंट्स और प्ले स्कूल के लिये यह कॉन्सेप्ट फायदे का सौदा हो रहा है। आगे अरोड़ा जी ने कहा कि एडवांस ऐडमिशन पेरेंट्स को जेब का फायदा भी दें रही है जैसे कि उनको फीस आदि में डिसकाउंट आसानी से मिल जाता है। इसके अलावा मदर्स प्राइड की वर्किंग डायरेक्टर एंड हेड पब्लिक रिलेशन की सरिता सयाल ने कहा कि एडवांस ऐडमिशन को चाह रहे है। और इसमें एडमिशन लेना भी आसान है। बस जब वो बच्चे का रजिस्ट्रेशन करवाने के लिये आएंगे तो उनका टोकन आमंउट ही भरना होगा। इसके अलावा एडवांस एडमिशन के फायदे होंगे कि एडमिशन के बाद बच्चा स्कूल की जिम्मेदारी होगी। और उसके जन्म के बाद उसकी परवरिश और ट्रेनिंग आदि सब स्कूल की देखरेख में ही होगा। इसके अलावा पेरेंट्स को बुलाकर बच्चे की एक्टिविटिस की जानकारी भी उनको दे दी जाएंगी। कुछ अभिभावको ने कहा कि यह ऑप्शन उन पेरेंट्स के लिये काफी अच्छा है जो लोग बिजी रहते है और साथ ही आर्थिक दृष्टिï से भी इसमें फायदा है। मैंने अपने बच्चे के लिये रजिस्टे्रशन करवाया है जिससे मेरे बच्चे का भविष्य अब सुरक्षित है। लेकिन दूसरी ओर कुछ ऐसे भी थे जिनको यह मजाक लगा कि उस बच्चे का एडमिशन हो रहा है जो अभी तक आया ही नहीं। यह एक प्री-स्कूल्स की तरफ से की जा रही एक सोचा-समझा बिजनेस फंडा है। 7 महीने की बच्ची की मां ने कहा कि मैं दो वर्ष पहले ही अपने बच्चों को स्कूल में आखिर क्यों भेजूं। सबके विचार और सोच अपनी-अपनी। लेकिन कुछ भी कहें जिस तरह से आज स्कूल्स की फीस बढ़ाने और एडमिशन की कटौती के झंझटों से मुक्ति पाने की यह नयी पहल काफी सुखद नजर आती है।

सोचो मत, ब्लॉग खोलो!

आज हर जगह मेरा ब्लॉग, तेरा ब्लॉग को लेकर आपसी लड़ाई सुनने व देखने को मिलती है। जिसका जो मन में आया वो लिख डाला। फिल्मों का सुपरस्टार अपने परिवार की तरह मानता है ब्लॉग को। सुपरस्टार से पूछती हूं कि सर आज कुछ ही महीने पहले आपने अपना ब्लॉग लिखना आरंभ किया, तो आज ब्लॉग आपका परिवार बन गया। इस बात का दूसरा अभिप्राय यह भी कि कहीं आजकल उम्रदाराज होने पर आपके पास समय की व्यस्तता थोड़ी कम है तो आपका ध्यान और प्यार अपने नये-नये पैदा हुए ब्लॉग पर तो नहीं चला गया। लेकिन ब्लॉग्स की व्यथा थोड़ी सोचने लायक हो जाती है। पहला ब्लॉग: यार मेरे ब्लॉग का मालिक तो अमीर है और स्टाइलिश भी। दूसरे ब्लॉग ने पूछा वो कैसे? पहला ब्लॉग: अमीर ऐसे कि उसके बाद काम करने को कुछ है ही नहीं, जब देखो मुझ पर ही अपना समय लगाता है। और स्टाइलिश ऐसे कि जब वो लिखता है तो किसी ना किसी के खिलाफ ही लिखता है। दूसरा ब्लॉग: सोचने वाली बात तो है। पहला ब्लॉग: तू बता तेरा ब्लॉगर कैसा है? दूसरा ब्लॉग: मेरा ब्लॉगर तो कोई साहित्यकार लगता है, या फिर कोई खाली टाइमपास इंसान। पहला ब्लॉग: वो कैसे? दूसरा ब्लॉग: अरे, ब्लॅाग भाई क्या सुनाऊं तुमको। आजतक पकड़ ही नहीं पाया। लेकिन सोचा कि वो साहित्यकार इसीलिये कि जब भी वो कोई लेख, कविता, कहानी, व्यग्ंय आदि लिखता है तो अचानक उसके बाद प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो जाती है। पहला ब्लॉग: अच्छा, दूसरा ब्लॉग: और दूसरा वो टाइमपास इंसान होगा कि जब देखो किसी अन्य इंसान का ब्लॉग खोलता है और अपने ब्लॉग से उसको टिप्पणी करता रहता है। सोचो यार ब्लॉग, मेरा क्या हाल हो गया होगा। इसी बीच दो अन्य ब्लॉग्स भी इस वार्तालाप का हिस्सा बन गये। तीसरे ने बोला सही बोल रहे हो भइया? आजकल तो ब्लॉग्स यानि कि हमको लेकर आपसी लड़ाई लडऩे को तैयार है। चौथा ब्लॉग बोल उठा कि यार उस लड़ाई का हिस्सा हम ही तो हैं। सोचो हमने क्या किसी को निमंत्रण पत्र देकर बोला था आओ ब्लॉग लिखो। जब किसी को किसी दूसरे पर छींटाकशी करनी होती है तो बस लिखने बैठ जाता है ब्लॉग। पहला बोल उठा: तुम काहे परेशान हो रहे हो जब लिखने वाले परेशान ना होते तो तुमको का? चौथा ब्लॉग बोला: भइयां जी! दुख ब्लॉग लिखने का नहीं है दुख तो इस बात का है कि यदि आप किसी की भलाई के लिये, किसी को अन्य विषयों की जानकारी देने के लिये, हिंदी भाषा के सुधार के लिये, या फिर दूसरी भाषाओं के छात्र-छात्राओं को जागरूक करने के लिये ब्लॉग लिखते तो क्या फायदा ना होता। पहला ब्लॉग बोला: हां यह तो है! तीसरा ब्लॉग, दूसरा ब्लॉग सभी ने उसके दर्द को पहचाना। चौथा ब्लॉग बोला: आखिर में लोग ब्लॉग लिखने का असली मकसद भूल गये हैं उनको यह लगता है कि ब्लॉग तो ऐसा स्थान है जहां पर आप अपनी दिल की भड़ास निकाल सकते हो। चाहे वो पढऩे वालों को पसंद आये या ना आये। सभी ब्लॉग एक स्वर में बोले हां यह तो है। चौथा ब्लॉग बोला: ब्लॉग का असली मकसद है एक अंजान व्यक्तियों को एक-दूसरे से जोडऩा। जिससे वो एक-दूसरे के विचारों को जान सकें। उन्हें आगे बढऩे का रास्ता दे सकें। फिर से सभी ब्लॉग एक स्वर में बोलें। पहला ब्लॉग बोला यह तो तुम सही कह रहे हो कि जब जिस किसी का मन करता है वो अपनी गालियां लिख देता है। किसी मुद्दे पर भड़ास निकालनी हो तो चलो यार ब्लॉग पर लिख डालें। सोचना होगा कि आखिर ब्लॉग का जन्म क्यों किया गया। पहलेपहल हम आए डिजिटल डायरी की शक्ल में। लेकिन अब तो अपनी शक्ल भी पहचान में नहीं आती। अब तो भइये ऐसा है कि अपनी भाषा के ज्ञान को विचारों की स्याही में भिंगोकर जिन शब्दों का उच्चारण वहां पर किया जायेगा वो ब्लॉग की शक्ल लेगा। दूसरा ब्लॉग बोला: लेकिन जो लिखा गया वो कई बार बुरा भी तो लग सकता है ना? पहला ब्लॉग बोला: हां क्यों नहीं, लेकिन आप उसका जवाब किस भाषा में दें रहे हो यह भी देखना होगा। आपको विकास की ओर जाना है ना कि ब्लॉग की आग फैलानी है। ब्लॉग तो एक माध्यम है आपकी भाषा के विकास का। तीसरा ब्लॉग बोला: हां सही तो है कि ब्लॉग का विकास यानि बोलियों का संक्रमण या पहले से ताकतवर भाषा का विकास। इसीलिये ब्लॉगर्स को अपनी लेखनी पर विकासशील चिह्नï लगाना होगा ना कि एक-दूसरे पर फब्तियों का रंग। इस तर्क-वितर्क पर सभी ब्लॉग एक स्वर में बोल उठे- कुछ तो सोचें हमारे भी दर्द को, जब कोई लेख पढऩे के बाद हम पर उंगली उठाता है तो हमें कितना दुखता होगा। पहला वाला ब्लॉग बोला: छोड़ो भाइयों इस जनता को हमारे दुख से क्या लेना? चौथा ब्लॉग बोला: सही कहा लेकिन एक बात तो सोचने योग्य है कि इस लड़ाई में आखिर जीत किसकी और हारा कौन? सभी एक स्वर में बोले कोई नहीं। एक बात बताओ हमारा यूज इतना ज्यादा क्यों बढ़ गया है? दरअसल ऑनलाइन मार्केट से अपना हिस्सा पाने में हम पहली सीढ़ी का काम करते हैं। पहले ब्लॉग खोलकर अपनी पहचान बनाओ/बढ़ाओ। ये क्लास पास होने पर पोर्टल बनाओ या फिर वेबसाइट का मिनिमल चार्ज देकर ऐड की मलाई मारो। यह तो हुई बेरोजगारों की बात। अब बात करते हैं अमिताभ बच्चन जैसे रोजगारियों की। पहले से ऐसे लोग अपनी खांसी अपने प्रशंसकों को सुनाने का बहाना लेकर हमारा इस्तेमाल करते हैं। अब चूंकि इनकी हर बात क्रांतिकारी या कंट्रोवर्सियल होती है सो बिना मांगे इन्हें बढिय़ा पैकेज के साथ नामी-गिरामी प्रायोजक मिल जाता है। एक बात बताओ जब आदमी चलने से लाचार होने लगेगा तो एक टाइपिस्ट रखकर कितनी कमाई कर लेगा हमारे जरिये। सोचो मत, ब्लॉग खोलो!

Sunday 10 May 2009

थोड़ा तो पास आओ...

कहते है जहां पर प्यार होता है वही नाराजगी भी होती है। रिलेशनशिप में प्यार, मोहब्बत के बीच छोटी-मोटी लड़ाई व नाराजगी भी चलती रहनी चाहिए, क्योंकि इससे रिश्ते ही गहराईयों का अंदाजा हो जाता है। गर्मियों के दिन है और छुट्टिïयों की सौगात, तो क्यों ना हो जाये एक एक ब्रेक लेने का टाइम। जिससे रिश्ते की नाराजगी को भी पूरी तरह से खत्म करके नजदीकियों में बदला जाये। जी हां, जब रिलेशन में दूरियों का एहसास होने लगे और तनाव ज्यादा बढऩे लगे तो जरूरत है एक ब्रेक की, जिसमें आप अपनी रिलेशनशिप को ओर भी ज्यादा मजबूत करने में कामयाब हो सकें। मौका है अपनी छुट्टियों को अच्छे से प्लान करने का। दरअसल, अधिकतर लोग अपनी छुट्टियां पिकनिक, डिनर या फिल्म देखकर बिताते हैं। वैसे, अगर आप अपना फ्री टाइम अपने पार्टनर के साथ बिताएंगे, तो आप दोनों के बीच के तनाव की जगह पुराना रोमैंस ले लेगा। - आप अपनी प्यार की गाड़ी को ट्रैक पर लाना चाहते हैं, तो अपनी छुट्टियां अपने पार्टनर के साथ बिताएं। दरअसल, एक-दूसरे के साथ समय बिताने पर आप दोनों के बीच का मन-मुटाव दूर हो जाएगा। साथ ही, साथ समय बिताने से आपको यह भी पता चल जाएगा कि आपका पार्टनर आपसे क्या चाहता है। - आप अपने पार्टनर के साथ जो भी समय बिताएं, उस दौरान उसे इस बात का अहसास दिलवाएं कि आप उसे बहुत प्यार करते हैं। बेशक उसमें आया बदलाव आप कुछ ही देर में नोटिस करने लगेंगे। - आप जब अपने पार्टनर के साथ लंबा समय बिताते हैं, तो छोटी-मोटी बात पर बहस होना लाजमी है। ऐसी सिचुएशन से बचने के लिए आप सुनने की आदत डालें। ऐसा करने से बहस बढऩे की बजाय जल्दी खत्म हो जाएगी। - जब भी अपने पार्टनर के साथ समय बिताएं, तो शिकायतों का पिटारा खोलकर न बैठ जाएं। बल्कि ऐसे में अपनी फीलिंग्स, इमोशंस, फेवरिट बुक्स, फिल्म, फ्रेंड्स, अपनी जॉब और अपनी लाइफ को कैसे एंजॉय करें जैसे मुद्दों पर बातचीत करें। - अगर आपकी अपने पार्टनर से बहस हो गई है, तो अगले दिन अपना बिहेवियर नार्मल रखें। - तनाव को बढ़ाये नहीं और ना ही एक-दूसरे की गलतियों को गिनाने का प्रयास करें। बल्कि जो हुआ सो हुआ कहकर टाल दें। - फीमेल पार्टनर की आदत होती है कि मौका मिलते ही शिकायतों का पिटारा लेकर बैठ जाती है इसीलिये इस तरह की कोशिश तो बिल्कुल ना करें। - यदि आप दोनों घर पर समय व्यतीत कर रहे हैं तो छोटे-छोटे काम मिलकर साथ में करें। यदि आप कहीं आउटिंग पर है तो आपके लिये ऑप्शन ओर भी अच्छा है। - दूरियों को कम करने की ड्यूटी सिर्फ मेल्स की ही नहीं होती बल्कि फीमेल्स की भी होती है। यदि आप पहल करेंगी तो आपका पार्टनर भी आपको पूरा सपोर्ट देगा। इसीलिये छुट्टिïयों का उठाइयें फायदा और कम करियें दूरियों को।

तराशें अपने आपको...


पढ़ाई खत्म तो करियर बनाने की चिंता, करियर की राह पर चलते हुए आने वाले समय में ऊचांइयों को छूने की चिंता, मेहनत के बाद भी ऊंचाईयों तक ना पहुंच पाने का गम आदि आदि...। ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही क्यों होता है, मैं तो इतनी मेहनत करता हूं, मैं तो दूसरों की तरह समय भी बरबाद नहीं करती। फिर क्यों? ऐसी कुछ दुविधा शायद हम सबके पास है लेकिन हम आसपास के लोगों, जगह, काम आदि में कमियों को तलाशते रहते है लेकिन कभी भी अपने आपमें कमी को ढूंढने का प्रयास नहीं किया। अपनी किस्मत को कोसने से अच्छा है कि हम अपनी कमियों को मेहनत की भट्टïी में पकाकर एक कामयाब इंसान बनने की राह पर आ सकें। स्वयं का आकलन करने के लिये निम्न बिंदुओं पर अवश्य ही ध्यान दें: मान (वैल्यू) इसके अन्तर्गत वे वस्तुएं आती हैं जिनका महत्व आपकी नजरों में बहुत अधिक होता है, जैसे कि उपलब्धियां (अचीवमेंट्स), प्रतिष्ठा (स्टेट्स), स्वत्व (ओटोंमनी) आदि। रुचियाँ (इंट्रस्ट) इसके अन्तर्गत आपको आनन्द प्रदान करने वाली वस्तुएं आती हैं, जैसे कि मित्रों के साथ लिप्त रहना , क्रिकेट खेलना , नाटक में अभिनय करना आदि। व्यक्तित्व (पर्सनेलिटी) अलग अलग लोगों का अलग अलग व्यक्तित्व होता है जो उनकी विलक्षणता (ट्रेट्स), आवश्यकता (नीड), रवैया (एटीट्यूट), व्यवहार (बिहेवियर) आदि का निर्माण करती हैं। अहर्ताएँ (स्किल्स) अलग अलग व्यक्तियों की अहर्ताएं या योग्यताएं (स्किल्स) भी अलग अलग होती हैं जैसे कि किसी को लेखन कार्य (राइटिंग) में आनन्द आता है तो किसी को शिक्षण कार्य (टीचिंग) या फिर किसी को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में। ऊपर लिखी गई बातों के आधार पर ही आप अपने करियर को नई राह देने में कामयाब होती है जिससे आपको मनपसंद जगह पर ही काम करने के अवसर भी मिलते है, और इसी से आपको अपने को तलाशने व तराशने में आसानी होती है।

करियर बनाना कोई उलझन नहीं!

करियर की सफलता और करियर की असफलता ही एक तरह से जिंदगी की सफलता और असफलता होती है। यही बात है कि करियर को लेकर हर युवा तनावग्रस्त रहता है। सिर्फ युवा ही क्यों, उसके माँ-बाप भी करियर को लेकर तनाव में रहते हैं। इस तनाव के कई कारण होते हैं। एक सबसे महत्वपूर्ण कारण वे कई उलझनें होती हैं जो अक्सर निराधार होती हैं। मगर उनके बारे में दिमाग में बनी कई आशंकाएं परेशान किए रहती हैं। इन उलझनों को लेकर कुछ सोच-समझकर उठायें गये कदम हमेशा सफलता की ओर लेकर जाते है। एक्सपर्ट आपको हमेशा सलाह देते है कि करियर की शुरूआत करते ही अपनी सैलरी बारगेनिंग करनी चाहिए। अक्सर होता यह है कि फ्रेशर्स कुछ भी मिल जाये की तर्ज पर चलते है जिससे कंपनी वाले उनका शोषण करते है जैसे कि फ्रेशर्स जिन सुविधाओं के हकदार है वो उनको नहीं मिल पाते। इसीलिये नौकरी पर सैैलरी पैकेज के लिये हमेशा सख्त रहें। आजकल इंटरनेट का जमाना है, लेकिन यह भी एक उलझन है कि कई जॉब साइट्स पर अपना रिज्यूम डालने के बाद भी नौकरी की कॉल नहीं आती। याद रखें कि जॉब हासिल करने के लिये आपको मेहनत करनी भी जरूरी है क्योंकि जॉब साइट्स को रोजाना कम से कम २५० से भी ज्यादा रिज्यूम आते है जिनको कटऑफ करना आसान नहीं होता, इसीलिये हमेशा याद रखें कि रिज्यूम मेल करने से नौकरी नहीं मिल जाती। इसलिए नौकरी पाने के लिए दूसरे तरीकों पर भी अमल करना चाहिए मसलन- प्लेसमेंट एजेंसी, अखबारों में अपाइंटमेंट सप्लीमेंट या कंसल्टेंसी फर्म्स आदि से मदद लेनी चाहिए। इसके अलावा जिन कंपनियों ने कोई वैकेंसी ऑफर नहीं निकाला वहां पर भी अपना रिज्यूम भेजना लाभदायक हो सकता है क्योंकि आपकी योग्यता, क्वालिफिकेशन और एक्सपीरियंस के आधार पर आपको इनफॉरमल इंटरव्यू कॉल आ सकता है। यह आपकी क्रिऐटिविटी पर भी निर्भर करता है। तो फिर जॉब बदलने से कोई इमेज खराब नहीं होती। हालांकि इतनी कोशिश तो जरूर करनी चाहिए कि कहीं एक साल से पहले नौकरियाँ न बदलें। इससे एम्प्लॉयर पर थोड़ा-सा फर्क पड़ता है, क्योंकि किसी भी जगह की चीजों को समझने में कुछ वक्त तो लगता ही है। वो जमाने गये जब पढ़ाई के आधार पर नौकरी की तलाश हुआ करती थी। आज भले ही आप बहुत विद्वान न हों, तो भी आज हर तरह की क्वालिफिकेशन रखने वालों के लिए नौकरी मौजूद है। अगर आपको कहीं से इंटरव्यू के लिए बुलावा आता है, तो उसका मतलब यह है कि आपकी योग्यता और अनुभव एम्प्लॉयर के मुताबिक है। ऐसे में आपको बस इंटरव्यू के दौरान यह साबित करना है कि आपका ही क्यों चयन किया जाए। एम्प्लॉयर अपने तरीके से तलाश लेता है कि आप में काबिलियत कितनी है। अगर आप जरूरतमंद है लेकिन आपमें वो काबिलियत भी है तो एम्प्लॉयर की नजर में इस बात का कोई खास असर नहीं होगा। अपनी काबिलियत को बेहतरीन तरीके से पेश करने की कला ही आपकी कीमत है।

गो ग्रीन, मोर ग्रीनर


जबसे इको-फ्रेंडली की बात चली है तब से हर जगह गो-ग्रीन का नारा सुनाई देता है और हो भी क्यों ना, आखिर हमारे स्वास्थय और समाज के रख-रखाव के लिये जरूरी है। रूकिए, यह कोई हैल्थ का कॉन्सेप्ट नहीं है। यह तो इसीलिये कि आजकल जब बल्ब, कार आदि सब कुछ इको-फ्रेंडली में तबदील हो रहा है तो आखिर हमारी सेक्स या लव लाइफ क्यों नहीं। जी हां, अब समय है अपनी सेक्स लाइफ को मोर ग्रीन करने का। बेडरूम का लगाव, प्यार आपकी रिलेशनशिप के लिये ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिये भी हैल्थी है। आइए जाने कुछ टिप्स जिससे आप अपनी लव और सेक्स लाइफ को इको-फ्रेंडली बना सकते है। शुरूआत करें वस्त्रों के साथ ही। आज स्लिपरी व स्टाइलिश अंर्तवस्त्रों को इको-फ्रेंडली बनाया गया है। जिनको बनाने के लिये हैम्प सिल्क, ऑरगेनिक कॉटन, बैम्बू का यूज होता है। कोशिश करें कि खरीदारी करते समय हमेशा इन्हीं को पहली पसंद बनायें। आपके कमरे की रौनक को बढ़ाने के लिये है बैम्बू शीट्स। जो सिल्की बैम्बू फेब्रिक के साथ बनाई जाती है औैर इसमें किसी भी तरह नुकसानदायक कैमिकल्स नहीं होते। जो आपके कमरे को लग्जरी लुक भी देती है। अपने पार्टनर को देने के लिये आपके पास फूलों से बेहतर ऑप्शन नहीं हो सकता। लेकिन इसके लिये आपको यदि लंबी दूरी तय करते हुए पेट्रोल फूंकना पड़े तो गलत है। इसीलिये उसके लिये आप सीजनल फ्लॉवर्स या फिर आसपास उगे हुए फूलों से भी काम चला सकते है। सेलिब्रेट करने के लिये वाइनिंग और डाइनिंग अच्छा ऑप्शन है लेकिन ऑरगेनिक वाइन को पहली पसंद बनाये। क्योंकि ऑरगेनिक वाइन हमेशा विकसित अंगूरों से ही बनती है जिसमें किसी भी प्रकार के केमिकल्स का यूज नहीं किया जाता। आजकल कंपनियां भी इस ओर ज्यादा ध्यान दें रही है इसीलिये उन्होंने सेक्स टॉय्स आदि चीजों को नेचुरल केमिकल्स को प्रयोग कर रही है इसके अलावा कंडोम भी एंवॉयमेंटली फ्रेंडली इजाद किये है।

Saturday 9 May 2009

मॉम शट अप

काफी दिनों के बाद हम सभी सहेलियों को एक दिन मिला साथ में समय बिताने का। अपने-अपने हाल-ए-दिल सभी ने बयान करने कुछ यूं शुरू किये कि समय का तो पता ही नहीं चला। मैंने कहा कि आज समय ऐसे व्यतीत हुआ कि समय कहां चला गया खुद समय को भी याद ना होगा।
सहेली बोली यार इतनी शुद्घ भाषा का इस्तेमाल मत करो!
अचानक मैंने कहां क्यों?
सहेली ने कहा, यार आजकल तो घर पर भी ङ्क्षहदी बोलने पर बैन लगा दिया है।
मैंने चौंकते हुए पूछा- ऐसा क्यों?
सहेली बोली- आपसी बातचीत के दौरान अचानक दिव्या आई(दिव्या उसकी 6 वर्ष की बेटी का नाम है) और गुस्से में बोली। शटअप मॉम, दिव्या ने कहा मैं सुनकर घबरा गई। फिर दिव्या बोली- डोंट टॉक इन हिंदी, ओनली इंगलिश।
मैंने कहा- क्यों?
दिव्या- आई टोल्ड यू डोंट टॉक इन हिंदी, ओनली इंगलिश, बीकॉज माय टीचर सेड इंगलिश इज ए बेस्ट लैंग्वेज।
मैं चौंक गई और मैंने सॉरी कहकर उसे जाने को कहा।
हम सहेलियों ने उससे पूछा फिर क्या हुआ।
सहेली बोली- दिव्या जिस स्कूल में है वहां पर हिंदी नहीं बोली जाती। और हिंदी बोलने वाले की पिटाई भी होती है।
सभी सहेलियां कान लगाकर सुनने लगी और आवाज आई यह क्या माजरा है।
क्योंकि हम सभी सहेलियों में से एक वो ही विवाहित है।
बोली बच्ची के भविष्य की ङ्क्षचता में उसे अंग्रेजी स्कूल में डाला था।
मैंने कहा यह तो अच्छी बात है।
वो बोली हां बहुत अच्छा है लेकिन वो बोलते बोलते रूक गई.... पर क्या? अरे, यार स्कूल अच्छा है अंग्रेजी पर बहुत जोर देते है और दिव्या तो अंग्रेजी बोलने में भी फस्र्टक्लास है। मैंने कहा यह तो गर्व की बात है तुम्हारे लिये।
सहेली बोली हां, गर्व की बात तो है लेकिन जब सुना तो मैं भी परेशान हो गई।
क्यों? मैंने पूछा।
सहेली बोली- माना अंग्रेजी दिनो-दिन अपना प्रभाव छोड़ रही है। साथ ही सबसे सर्वाधिक बोलचाल की भाषा भी अंग्रेजी ही है। पर आज भी हमारी मातृभाषा आज भी हिंदी है। लेकिन बच्चे जब अंग्रेजी पर जोर देते है तो क्या हम अपने ही देश में अपनी मातृभाषा हिंदी का निरादर नहीं कर रहे। ऐसा महसूस होता है।
मैं बोली हां यह तो है लेकिन तुम परेशान क्यों हो?
सहेली ने कहां- पिछले दिनों की बात है दिव्या ने बड़े गुरूर भरे शब्दों में आकर मुझे एक वाक्या सुनाया था।
सभी ने कहा वो क्या वाक्या?
सहेली ने कहा यार सुनो! दिव्या अभी 6 वर्ष की है और अंग्रेजी स्कूल में पढ़ती है और अंग्रेजी में भी अच्छी तरह से बात कर पाती है। उसकी क्लास टीचर ने किसी एक छात्रा को हिंदी में बात करते सुन लिया बस फिर क्या था, उसने दिव्या से उसकी जमकर पिटाई करवाई। और साथ ही यह भी निर्देश दिये कि यदि वो कभी किसी छात्रा को हिंदी में बात करते सुने तो उसे उसी समय उस छात्रा की पिटाई करने का पूरा अधिकार है।
ओह, यह क्या? सभी ने कहा। फिर क्या सभी ने पूछा।
सहेली ने दुखी मन से बोला दिव्या को तो इसका मतलब भी नहीं मालूम लेकिन मैं इस वाक्या को सुनकर काफी दुखी थी कि आखिर बच्चों को हमने स्कूल में गुणी होने व शिक्षा प्राप्त करने के लिये भेजा था और वहां पर अंग्रेजी के दबाव के कारण उस कोमल मन को क्या संस्कार दिये जा रहे है।
सभी बहुत भावुक हो गये और सोचते-विचारते दिन समाप्त हो
लेकिन मुझे यह वाक्या सच में रात भर परेशान करता रहा कि आखिर हम कहां से कहां तक पहुंच गये है। अपने ही घर में अपनी मां को मम्मी और बाबा को डेडी बोलने में शर्म आने लगी है। एक बच्चे के मन पर अंग्रेजी का इतना दबाव बना दिया जाता है कि कॉलेज या नौकरी की राह तक पहुंचते-पहुंचते वो हिंदी को हीन भावना से देखेंगे। आज भी हमारे गांव-कस्बों में गरीब मां-बाप के पास इतना पैसा नहीं है कि वो अपने बच्चों को पढ़ाई करवा सकें। जैसे-तैसे करके वो हिंदी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का जुगाड़ करते है लेकिन योग्यता के बावजूद उनकी मानक भाषा ही उनके लिये बंधक बन जाती है। अंग्रेजी ना बोल पाने के कारण वो नौकरी पाने की लाईन में सबसे पीछे खड़े ही रह जाते है बस इस आस में कि मेरा नम्बर कब आयेगा। सच में यह सोचकर घिन्न होती है कि आज हमारे बच्चों में अंग्रेजी एक खान-पान का हिस्सा बन गई है यहां तक कि मां-बाप को बच्चों के सामने हिंदी में बात करना भी लागू नहीं है। क्योंकि उसे पिटाई करने का अधिकार है उसे मालूम है कि हिंदी बोलना हीन और तुच्छ है इसीलिये शायद उसकी नजर में उसके मां-बाप से लेकर उसके परिवार के सदस्य भी हीन है। माना परिवर्तन के तहत यह सब जायज है लेकिन क्या ऐसा महसूस नहीं होता कि आज की पढ़ी लिखी माने जाने वाली युवा पीढ़ी ने केवल भाषा को ही नहीं बल्कि एक पूरे पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति को अपनाकर अपने हिंदी संस्कारों का त्याग कर दिया है। ए बी सी डी की तर्ज पर बनी यह युवा पीढ़ी मां-बाप को हैलो, हाय तो बोल सकती है लेकिन झुककर प्रणाम करने में उसे तकलीफ होने लगी है। गर्व से कहो कि हमारे बच्चे अंग्रेजी मीडियम के है लेकिन हिंदी संस्कारों का गला घोंटकर आखिर हमने क्या पाया यह सोचने वाली बात है।

Friday 1 May 2009

मैं साहित्यकार को तीसरी आंख मानता हूं: विष्णु प्रभाकर

राष्ट्र उनकी और दिशा निर्देश हेतु देख रहा है, लेकिन साहित्यकार असफल हो रहा हैं। मैं साहित्यकार को तीसरी आंख मानता हूं। व्यवस्था को ठीक ढंग से चलने को बाध्य करने का दायित्व साहित्यकार पर है। उसे इस बहुत बड़े दायित्व का भार वहन करना चाहिए। वह यह काम सीधे आक्रमण करके नहीं करता बल्कि अपने पाठकों को सही स्थिति से परिचित कराता है। ऐसे कराता है कि उसकी संवेदना जाग उठती है। स्पष्टï विचारों को रखने वाले गांधी टोपी, कपड़े का झोला लिये युवाओं में नयो जोश भरने वाले और गांधी से प्रभावित व स्वंतत्रता सेनानी रहे विष्णु प्रभाकर, जिन्होंने कहा जीने के लिये तो सौ की उम्र भी काफी छोटी है। जिनके जाने के बाद साहित्य जगत बिल्कुल पंखहीन हो गया है। पिछले ५० वर्षो से चालीस से भी ज्यादा पुस्तके लिख चुके है जिसमें नाटक, एकांकी, उपन्यास, जीवनी आदि। प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया, लेकिन सरकार द्वारा किसी साहित्यकार की देर से सुध लेने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सम्मान वापस कर दिया। उनके बारे में नया ज्ञानोदय में प्रभाकर श्रोत्रिय ने लिखा था-विष्णुजी साहित्य और पाठकों के बीच स्लिप डिस्क के सही हकीम हैं। यही कारण है कि उनका साहित्य पुरस्कारों के कारण नहीं पाठकों के कारण चर्चित हुआ। प्रभाकर का जन्म 1912 को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गाँव में हुआ था। कम आयु में ही वे पश्चिम उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर से तत्कालीन पंजाब के हिसार चले गए। प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही। हिन्दी मिलाप में 1931 में पहली कहानी दीवाली छपने के साथ उनके लेखन को एक नया उत्साह मिला और उनकी कलम से साहित्य को समृद्ध करने वाली रचनाएँ निकलने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह करीब आठ दशकों तक सक्रिय रहा। आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया। नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने पर वे शरतचंद्र की जीवनी पर आधारित उपन्यास आवारा मसीहा लिखने के लिए प्रेरित हुए। इस उपन्यास के लिए उन्होंने शरत बाबू से जुड़े स्रोत जुटाए, कई स्थानों का दौरा किया और बांग्ला भाषा सीखी। यह जीवनी छपकर जब बाजार में आई तो साहित्य जगत में विष्णु प्रभाकर के नाम की धूम मच गई। प्रचूर साहित्य सृजन के बावजूद और अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान मिलने के बावजूद आवारा मसीहा उनकी पहचान का पर्याय बन गया और इसने साहित्य में उनका अलग मुकाम बनाए रखा। प्रभाकर के लिखे उपन्यासों में ढलती रात, आवारा मसीहा, अर्धनारीश्वर, धरती अब भी घूम रही है, क्षमादान, दो मित्र प्रमुख हैं। उन्होंने तीन भागों में अपनी आत्मकथा पंखहीन भी लिखी। विष्णु प्रभाकर को साहित्य सेवा के लिए पद्मभूषण, अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश-विदेश के अनेक सम्मानों से नवाजा ।