Saturday 9 May 2009

मॉम शट अप

काफी दिनों के बाद हम सभी सहेलियों को एक दिन मिला साथ में समय बिताने का। अपने-अपने हाल-ए-दिल सभी ने बयान करने कुछ यूं शुरू किये कि समय का तो पता ही नहीं चला। मैंने कहा कि आज समय ऐसे व्यतीत हुआ कि समय कहां चला गया खुद समय को भी याद ना होगा।
सहेली बोली यार इतनी शुद्घ भाषा का इस्तेमाल मत करो!
अचानक मैंने कहां क्यों?
सहेली ने कहा, यार आजकल तो घर पर भी ङ्क्षहदी बोलने पर बैन लगा दिया है।
मैंने चौंकते हुए पूछा- ऐसा क्यों?
सहेली बोली- आपसी बातचीत के दौरान अचानक दिव्या आई(दिव्या उसकी 6 वर्ष की बेटी का नाम है) और गुस्से में बोली। शटअप मॉम, दिव्या ने कहा मैं सुनकर घबरा गई। फिर दिव्या बोली- डोंट टॉक इन हिंदी, ओनली इंगलिश।
मैंने कहा- क्यों?
दिव्या- आई टोल्ड यू डोंट टॉक इन हिंदी, ओनली इंगलिश, बीकॉज माय टीचर सेड इंगलिश इज ए बेस्ट लैंग्वेज।
मैं चौंक गई और मैंने सॉरी कहकर उसे जाने को कहा।
हम सहेलियों ने उससे पूछा फिर क्या हुआ।
सहेली बोली- दिव्या जिस स्कूल में है वहां पर हिंदी नहीं बोली जाती। और हिंदी बोलने वाले की पिटाई भी होती है।
सभी सहेलियां कान लगाकर सुनने लगी और आवाज आई यह क्या माजरा है।
क्योंकि हम सभी सहेलियों में से एक वो ही विवाहित है।
बोली बच्ची के भविष्य की ङ्क्षचता में उसे अंग्रेजी स्कूल में डाला था।
मैंने कहा यह तो अच्छी बात है।
वो बोली हां बहुत अच्छा है लेकिन वो बोलते बोलते रूक गई.... पर क्या? अरे, यार स्कूल अच्छा है अंग्रेजी पर बहुत जोर देते है और दिव्या तो अंग्रेजी बोलने में भी फस्र्टक्लास है। मैंने कहा यह तो गर्व की बात है तुम्हारे लिये।
सहेली बोली हां, गर्व की बात तो है लेकिन जब सुना तो मैं भी परेशान हो गई।
क्यों? मैंने पूछा।
सहेली बोली- माना अंग्रेजी दिनो-दिन अपना प्रभाव छोड़ रही है। साथ ही सबसे सर्वाधिक बोलचाल की भाषा भी अंग्रेजी ही है। पर आज भी हमारी मातृभाषा आज भी हिंदी है। लेकिन बच्चे जब अंग्रेजी पर जोर देते है तो क्या हम अपने ही देश में अपनी मातृभाषा हिंदी का निरादर नहीं कर रहे। ऐसा महसूस होता है।
मैं बोली हां यह तो है लेकिन तुम परेशान क्यों हो?
सहेली ने कहां- पिछले दिनों की बात है दिव्या ने बड़े गुरूर भरे शब्दों में आकर मुझे एक वाक्या सुनाया था।
सभी ने कहा वो क्या वाक्या?
सहेली ने कहा यार सुनो! दिव्या अभी 6 वर्ष की है और अंग्रेजी स्कूल में पढ़ती है और अंग्रेजी में भी अच्छी तरह से बात कर पाती है। उसकी क्लास टीचर ने किसी एक छात्रा को हिंदी में बात करते सुन लिया बस फिर क्या था, उसने दिव्या से उसकी जमकर पिटाई करवाई। और साथ ही यह भी निर्देश दिये कि यदि वो कभी किसी छात्रा को हिंदी में बात करते सुने तो उसे उसी समय उस छात्रा की पिटाई करने का पूरा अधिकार है।
ओह, यह क्या? सभी ने कहा। फिर क्या सभी ने पूछा।
सहेली ने दुखी मन से बोला दिव्या को तो इसका मतलब भी नहीं मालूम लेकिन मैं इस वाक्या को सुनकर काफी दुखी थी कि आखिर बच्चों को हमने स्कूल में गुणी होने व शिक्षा प्राप्त करने के लिये भेजा था और वहां पर अंग्रेजी के दबाव के कारण उस कोमल मन को क्या संस्कार दिये जा रहे है।
सभी बहुत भावुक हो गये और सोचते-विचारते दिन समाप्त हो
लेकिन मुझे यह वाक्या सच में रात भर परेशान करता रहा कि आखिर हम कहां से कहां तक पहुंच गये है। अपने ही घर में अपनी मां को मम्मी और बाबा को डेडी बोलने में शर्म आने लगी है। एक बच्चे के मन पर अंग्रेजी का इतना दबाव बना दिया जाता है कि कॉलेज या नौकरी की राह तक पहुंचते-पहुंचते वो हिंदी को हीन भावना से देखेंगे। आज भी हमारे गांव-कस्बों में गरीब मां-बाप के पास इतना पैसा नहीं है कि वो अपने बच्चों को पढ़ाई करवा सकें। जैसे-तैसे करके वो हिंदी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का जुगाड़ करते है लेकिन योग्यता के बावजूद उनकी मानक भाषा ही उनके लिये बंधक बन जाती है। अंग्रेजी ना बोल पाने के कारण वो नौकरी पाने की लाईन में सबसे पीछे खड़े ही रह जाते है बस इस आस में कि मेरा नम्बर कब आयेगा। सच में यह सोचकर घिन्न होती है कि आज हमारे बच्चों में अंग्रेजी एक खान-पान का हिस्सा बन गई है यहां तक कि मां-बाप को बच्चों के सामने हिंदी में बात करना भी लागू नहीं है। क्योंकि उसे पिटाई करने का अधिकार है उसे मालूम है कि हिंदी बोलना हीन और तुच्छ है इसीलिये शायद उसकी नजर में उसके मां-बाप से लेकर उसके परिवार के सदस्य भी हीन है। माना परिवर्तन के तहत यह सब जायज है लेकिन क्या ऐसा महसूस नहीं होता कि आज की पढ़ी लिखी माने जाने वाली युवा पीढ़ी ने केवल भाषा को ही नहीं बल्कि एक पूरे पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति को अपनाकर अपने हिंदी संस्कारों का त्याग कर दिया है। ए बी सी डी की तर्ज पर बनी यह युवा पीढ़ी मां-बाप को हैलो, हाय तो बोल सकती है लेकिन झुककर प्रणाम करने में उसे तकलीफ होने लगी है। गर्व से कहो कि हमारे बच्चे अंग्रेजी मीडियम के है लेकिन हिंदी संस्कारों का गला घोंटकर आखिर हमने क्या पाया यह सोचने वाली बात है।

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