Thursday 14 May 2009

सोचो मत, ब्लॉग खोलो!

आज हर जगह मेरा ब्लॉग, तेरा ब्लॉग को लेकर आपसी लड़ाई सुनने व देखने को मिलती है। जिसका जो मन में आया वो लिख डाला। फिल्मों का सुपरस्टार अपने परिवार की तरह मानता है ब्लॉग को। सुपरस्टार से पूछती हूं कि सर आज कुछ ही महीने पहले आपने अपना ब्लॉग लिखना आरंभ किया, तो आज ब्लॉग आपका परिवार बन गया। इस बात का दूसरा अभिप्राय यह भी कि कहीं आजकल उम्रदाराज होने पर आपके पास समय की व्यस्तता थोड़ी कम है तो आपका ध्यान और प्यार अपने नये-नये पैदा हुए ब्लॉग पर तो नहीं चला गया। लेकिन ब्लॉग्स की व्यथा थोड़ी सोचने लायक हो जाती है। पहला ब्लॉग: यार मेरे ब्लॉग का मालिक तो अमीर है और स्टाइलिश भी। दूसरे ब्लॉग ने पूछा वो कैसे? पहला ब्लॉग: अमीर ऐसे कि उसके बाद काम करने को कुछ है ही नहीं, जब देखो मुझ पर ही अपना समय लगाता है। और स्टाइलिश ऐसे कि जब वो लिखता है तो किसी ना किसी के खिलाफ ही लिखता है। दूसरा ब्लॉग: सोचने वाली बात तो है। पहला ब्लॉग: तू बता तेरा ब्लॉगर कैसा है? दूसरा ब्लॉग: मेरा ब्लॉगर तो कोई साहित्यकार लगता है, या फिर कोई खाली टाइमपास इंसान। पहला ब्लॉग: वो कैसे? दूसरा ब्लॉग: अरे, ब्लॅाग भाई क्या सुनाऊं तुमको। आजतक पकड़ ही नहीं पाया। लेकिन सोचा कि वो साहित्यकार इसीलिये कि जब भी वो कोई लेख, कविता, कहानी, व्यग्ंय आदि लिखता है तो अचानक उसके बाद प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो जाती है। पहला ब्लॉग: अच्छा, दूसरा ब्लॉग: और दूसरा वो टाइमपास इंसान होगा कि जब देखो किसी अन्य इंसान का ब्लॉग खोलता है और अपने ब्लॉग से उसको टिप्पणी करता रहता है। सोचो यार ब्लॉग, मेरा क्या हाल हो गया होगा। इसी बीच दो अन्य ब्लॉग्स भी इस वार्तालाप का हिस्सा बन गये। तीसरे ने बोला सही बोल रहे हो भइया? आजकल तो ब्लॉग्स यानि कि हमको लेकर आपसी लड़ाई लडऩे को तैयार है। चौथा ब्लॉग बोल उठा कि यार उस लड़ाई का हिस्सा हम ही तो हैं। सोचो हमने क्या किसी को निमंत्रण पत्र देकर बोला था आओ ब्लॉग लिखो। जब किसी को किसी दूसरे पर छींटाकशी करनी होती है तो बस लिखने बैठ जाता है ब्लॉग। पहला बोल उठा: तुम काहे परेशान हो रहे हो जब लिखने वाले परेशान ना होते तो तुमको का? चौथा ब्लॉग बोला: भइयां जी! दुख ब्लॉग लिखने का नहीं है दुख तो इस बात का है कि यदि आप किसी की भलाई के लिये, किसी को अन्य विषयों की जानकारी देने के लिये, हिंदी भाषा के सुधार के लिये, या फिर दूसरी भाषाओं के छात्र-छात्राओं को जागरूक करने के लिये ब्लॉग लिखते तो क्या फायदा ना होता। पहला ब्लॉग बोला: हां यह तो है! तीसरा ब्लॉग, दूसरा ब्लॉग सभी ने उसके दर्द को पहचाना। चौथा ब्लॉग बोला: आखिर में लोग ब्लॉग लिखने का असली मकसद भूल गये हैं उनको यह लगता है कि ब्लॉग तो ऐसा स्थान है जहां पर आप अपनी दिल की भड़ास निकाल सकते हो। चाहे वो पढऩे वालों को पसंद आये या ना आये। सभी ब्लॉग एक स्वर में बोले हां यह तो है। चौथा ब्लॉग बोला: ब्लॉग का असली मकसद है एक अंजान व्यक्तियों को एक-दूसरे से जोडऩा। जिससे वो एक-दूसरे के विचारों को जान सकें। उन्हें आगे बढऩे का रास्ता दे सकें। फिर से सभी ब्लॉग एक स्वर में बोलें। पहला ब्लॉग बोला यह तो तुम सही कह रहे हो कि जब जिस किसी का मन करता है वो अपनी गालियां लिख देता है। किसी मुद्दे पर भड़ास निकालनी हो तो चलो यार ब्लॉग पर लिख डालें। सोचना होगा कि आखिर ब्लॉग का जन्म क्यों किया गया। पहलेपहल हम आए डिजिटल डायरी की शक्ल में। लेकिन अब तो अपनी शक्ल भी पहचान में नहीं आती। अब तो भइये ऐसा है कि अपनी भाषा के ज्ञान को विचारों की स्याही में भिंगोकर जिन शब्दों का उच्चारण वहां पर किया जायेगा वो ब्लॉग की शक्ल लेगा। दूसरा ब्लॉग बोला: लेकिन जो लिखा गया वो कई बार बुरा भी तो लग सकता है ना? पहला ब्लॉग बोला: हां क्यों नहीं, लेकिन आप उसका जवाब किस भाषा में दें रहे हो यह भी देखना होगा। आपको विकास की ओर जाना है ना कि ब्लॉग की आग फैलानी है। ब्लॉग तो एक माध्यम है आपकी भाषा के विकास का। तीसरा ब्लॉग बोला: हां सही तो है कि ब्लॉग का विकास यानि बोलियों का संक्रमण या पहले से ताकतवर भाषा का विकास। इसीलिये ब्लॉगर्स को अपनी लेखनी पर विकासशील चिह्नï लगाना होगा ना कि एक-दूसरे पर फब्तियों का रंग। इस तर्क-वितर्क पर सभी ब्लॉग एक स्वर में बोल उठे- कुछ तो सोचें हमारे भी दर्द को, जब कोई लेख पढऩे के बाद हम पर उंगली उठाता है तो हमें कितना दुखता होगा। पहला वाला ब्लॉग बोला: छोड़ो भाइयों इस जनता को हमारे दुख से क्या लेना? चौथा ब्लॉग बोला: सही कहा लेकिन एक बात तो सोचने योग्य है कि इस लड़ाई में आखिर जीत किसकी और हारा कौन? सभी एक स्वर में बोले कोई नहीं। एक बात बताओ हमारा यूज इतना ज्यादा क्यों बढ़ गया है? दरअसल ऑनलाइन मार्केट से अपना हिस्सा पाने में हम पहली सीढ़ी का काम करते हैं। पहले ब्लॉग खोलकर अपनी पहचान बनाओ/बढ़ाओ। ये क्लास पास होने पर पोर्टल बनाओ या फिर वेबसाइट का मिनिमल चार्ज देकर ऐड की मलाई मारो। यह तो हुई बेरोजगारों की बात। अब बात करते हैं अमिताभ बच्चन जैसे रोजगारियों की। पहले से ऐसे लोग अपनी खांसी अपने प्रशंसकों को सुनाने का बहाना लेकर हमारा इस्तेमाल करते हैं। अब चूंकि इनकी हर बात क्रांतिकारी या कंट्रोवर्सियल होती है सो बिना मांगे इन्हें बढिय़ा पैकेज के साथ नामी-गिरामी प्रायोजक मिल जाता है। एक बात बताओ जब आदमी चलने से लाचार होने लगेगा तो एक टाइपिस्ट रखकर कितनी कमाई कर लेगा हमारे जरिये। सोचो मत, ब्लॉग खोलो!

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